रात हुई मुझे छत पर एक कमरे में बिठा दिया गया। मैं गुरनाम का इंतज़ार करने लगी। करीब एक घंटे बाद वो आया मेरे पास, मैं खड़ी हो गई, उसने दारु पी रखी थी, तीखी गन्ध आ रही थी लेकिन काला अक्सर मुझे पी कर ही चोदता था इसलिए मुझे कुछ अलग नहीं लगा।
वाह मेरे चाँद के टुकड़े ! ज़रा घूंघट उठा ! देखूं तो मेरा चाँद कैसा है ?
खुद उठा लो !
उसने मेरा घूंघट उठाया- वाह क्या बात है !
दरवाज़ा खुला है, मैंने कहा, क्योंकि उसने हाथ मेरे लहंगे की डोरी पर डाला था सीधे ही। डोरी खिंचते ही मैं नंगी हो जाती।
हाय ! अभी लो !
लगा कि गुरनाम बहुत रंगीन मर्द है ! लगता है आज गृह-प्रवेश के बाद वो मेरे ग्रह को शांत भी कर देगा।तभी उसको बाहर से किसी ने आवाज़ दी, वो बोला- मैं अभी आया !
उसने जाते-जाते बत्ती बुझा दी। कुछ देर में लौटा, लगता था कि एक और मोटा पेग खींच कर आया था।
उसने अपनी शर्ट उतारी, फिर अपनी पैंट, सिर्फ अंडरवीयर और बनियान में था। उसकी बॉडी ठीक-ठाक थी।
आकर उसने मेरी चोली खोली, लहंगे की डोर खींची। मैं बेड पर खड़ी थी, लहंगा नीचे गिर गया। मेरी जांघें देख उसका दिल डोलने लगा, दूध से गोरी थी, चिकनी पंजाबन के मखमली पट्ट थे- वाह क्या रन्न(औरत) है !
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वो मेरी जांघें चूमने लगा। उसका हाथ मेरे फड़फड़ाते कबूतरों पर जा टिका। मैंने अपने आप ही हुक़ खोल दिए, मेरे स्तन आज़ाद होकर और फड़फड़ाने लगे।
क्या माल है साली तेरा !
उसने जैसे मेरा चुचूक पीना शुरु किया, मैं आपा खो बैठी, मैं उसके अंडरवीयर को खींच कर उसके लौड़े पर टूट पड़ी। खूब सहलाया, इतना बड़ा नहीं था, लेकिन मोटा था !
बोला- खेल लो इसके साथ !
मैंने चूमा, फिर धीरे से मुँह में लेकर दो तीन चुप्पे लगा दिए। उसने मेरी टाँगें खोलीं और बीच में आकर आसन लगा लिया और अन्दर डालने के लिए झटका दिया। मैंने सांस अंदर खींच ली ताकि उसको लगे कि इसकी बहुत टाईट है।
दो झटकों में आधा घुस गया, तीसरे में पूरा मैंने नाटक करते हुए चीख लगा दी।
क्या हुआ ?
बहुत तीखा दर्द है !
अभी मस्ती आएगी ! एक बार सेट होने दे !
लेकिन मेरी चूत की गर्मी से वो पिघल गया और जल्दी मुझे पर ढेरी हो गया। मेरी उमंग-कामनाएँ वहीं ख़त्म हो गई। मैंने काफी प्रयास किये लेकिन बोबारा दम नहीं पकड़ा उसने और वो सो गया।
मैं पूरी रात जलती रही अपनी कामाग्नि में !
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फिर सोचा- पहली रात थी, मेरी जवानी है भी बहुत गर्म, हो गया होगा ! कल ठीक होकर करेगा तो मुझे ग्रह-शान्ति तक पहुंचा देगा।
लेकिन ऐसा वैसा कुछ नहीं हुआ, कभी बाद में उंगली से ठंडी करता, कभी जुबान से !
लेकिन मैं बहुत खफा थी उससे !
दस दिन बाद मुझे माँ लेने आई, उसके साथ मुझे तोर(भेज) दिया गया।
मैंने सोच लिया कि मैं माँ से सब बता दूँगी और वापस नहीं आउंगी।
अगले दिन माँ को बताने लगी थी कि मां बोली- शाम को बताना !
उसके जाते ही कुछ देर बाद काला और चंचल अंदर घुस आये। मैं काला से चिपक गई, सब कुछ बताया, वो बोला- यह तेरी सजा है ! मुझे जो धोखा दिया था !
कुछ ही पल में हम तीनों नंगे थे, एक मेरा दूध पीने लगा, दूसरा मेरी चूत चाटने लगा।
मैं खुलकर दोनों को शाबाशी देने लगी- वाह मेरे आशिको ! तुम ही मर्द हो !
पहले काले ने चोदा, फिर चंचल ने जी भर कर नज़ारे लिए। वो एक बार झड़े, मैं चार बार !
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रोज़ दोनों से चुदवाती। छत पर बुलाती कभी एक को कभी दूसरे को !
एक रात चंचल ने मेरे साथ बिना निरोध कर दिया।
जब गुरनाम मुझे लेने आया तो मैंने माँ से कह दिया- मुझे वहाँ नहीं बसना !
लाख समझाने पर भी मैं नहीं मानी। गुरनाम को वापस भेज दिया, यहाँ मुझे चुदाई का हर सुख मिल रहा था। गुरनाम के घर वाले उससे वजह पूछते तो क्या कहता वो !
उधर काला को चोट लग गई, उसकी टांग टूट गई, वो बिस्तर पर था, चंचल मुझे संतुष्ट करता था, मैं उसको प्यार करने लगी और उससे इज़हार भी कर दिया। लेकिन उसकी बीवी थी, एक बच्चा था, फिर भी वो मुझे लेकर उड़ने को तैयार हो गया।
ऐसे एक महीना बीत गया, मैं चंचल के साथ भाग गई एक दिन ! लेकिन मैं वापस आ गई उसी दिन ! मैं नहीं चाहती थी उसके बच्चे मेरे कारण प्रभावित हों।
उसके बाद जब मैं गुरनाम के साथ वापस नहीं जाती थी तो एक दिन मुझे लेने जेठ जी आये। उन्होनें मेरे साथ अकेले में बात करने को कहा। पहले मैं राज़ी नहीं हुई लेकिन फिर मैं मान गई। उनसे मेरी जो बातचीत हुई उसे मैं बाद में लिखूंगी।
आपकी पम्मी