काफी देर तक मैंने नीलम रानी के मस्त होंठों का रस चूसा और फिर मैंने उसके चूचियाँ कस के दबानी शुरू कीं।
दोनों हाथों से उसके तने हुए अकड़े हुए चूचे जो मैंने मसले कुचले, तो नीलम रानी की चीखें निकल गईं।
लेकिन उसकी चीखें मस्ती से भरी हुई थीं न कि पीड़ा की।
नीलम रानी मज़े में भरी हुई अपना मुँह इधर उधर हिला रही थी और सीत्कार पर सीत्कार भरे जा रही थी।
उसकी पेशानी पर पसीने की बारीक बारीक बूंदें उभर आई थीं, बदहवासी में उसके बाल बेतरतीब हो गये थे।
उसकी आँखें अब दीवानापन झलका रही थीं।
मैं कभी चूचे मसलता और कभी निप्पल उंगलियों में भींच के ज़ोर ज़ोर से उमेठता।
बीच बीच में मैं उसकी बाहों को और कंधों को भी कस के दबा देता।
मुझे साफ साफ समझ आ गया था कि नीलम रानी को दर्द पाकर बहुत आनन्द आ रहा था।
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मैं उसकी जाँघों से थोड़ा पीछे को खिसका, खुद को नीलम रानी के घुटनों पर जमा कर बिठाया और फिर मैंने एक उंगली उसकी चूत पर फिराई।
जैसा कि मुझे आशा थी, चूत पानी पानी हो रही थी, मेरी उंगली रस से पूरी तरह भीग गई।
नीलम रानी को थोड़ा और दर्द देने के लिये मैंने अब उसकी जाँघों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया।
अपने हाथों के अंगूठे एक एक जांघ में गाड़ दिये और उन मस्त चिकनी रेशमी मुलायम जाँघों को ज़ोर ज़ोर से मसला और नोचा-खसोटा।
नीलम रानी और भी ज़्यादह उत्तेजित हो गई।
जितना मैं ज़ोर से उसकी जाँघों को मसलता वो उतना ही अधिक मस्त हुए जा रही थी। उसकी आँखों में अब लाल लाल डोरे तैरने लगे थे, मुँह से सी…सी… हाय…हाय… हाय…उऊऊऊँ….उऊऊऊऊँ की ठरक से भरपूर आवाज़ें आ रही थीं।
चूत पर दुबारा से उंगली फिराई तो एक फव्वारा सा रस का छूटा।
मैंने तुरंत उंगली मुँह में लेकर नीलम रानी के अमृत समान चूत रस को स्वाद लिया।
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नीलम रानी की चूचियों पर लाल नीले निशान पड़ गये थे जहाँ जहाँ मैंने उनको पूरी ताक़त से दबा दबा के कुचला था।
उसी प्रकार के निशान अब नीलम रानी की जाँघों पर भी आने लगे थे।
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हालांकि नीलम रानी खूब मज़ा लूट रही थी। उसके शरीर में जो मैं पीड़ा पहुंचा रहा था, उसे बेहद उत्तेजित किये जा रही थी।
उसका सुन्दर मुखड़ा चुदास की गर्मी से लाल हो चुका था, वो बार बार फड़क उठती थी जैसे कोई तेज़ लहर उसके बदन में अचानक से ऊपर नीचे, नीचे ऊपर दौड़ लगा रही हो।
क्यूंकि मैं उसकी टांगों पर बैठा हुआ था, वो अपनी टांगें नहीं हिला पा रही थी, लेकिन वो अपना सिर दायें से बायें और फिर बायें से दायें कर रही थी।
उसने अपने हाथों से मेरी कलाइयाँ जकड़ रखी थीं। पता नहीं वो उन्हें रोकने के लिये जकड़े थी या उन्हें तेज़ करने के लिये।
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नीलम रानी के रसीले होंठ हल्के हल्के कंपकंपा रहे थे, उसकी आँखें आधी खुली आधी मुंदी हुई थीं और उसके नथुने बीच बीच में फड़फड़ाने लगते थे।
इस समय नीलम रानी उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच चुकी थी, मेरा खुद भी चुदास की तेज़ी से बुरा हाल हो रहा था।
लण्ड मेरी पैंट में फंसा हुआ बार बार आज़ाद होने की ज़िद कर रहा था।
अब समय आ गया था कि नीलम रानी को चोद दिया जाये।
कहानी जारी रहेगी।